Monday, October 14, 2013

अतीत से वर्तमान तक - भाग अंतिम (राजपूत और भविष्य)

भाग १ से आगे

संघर्ष के इस लंबे एक हजार वर्ष के इतिहास में उन्नति-अवनति; जय-पराजय के कई अवसर आये| भयंकर राजनैतिक और ऐतिहासिक भूलें भी हुई| पर इतना सब होते हुए भी मुग़लशाही के अंतिम दिनों देश देश के बड़े भू-भाग पर क्षत्रियों का ही आधिपत्य रहा| यह कितने आश्चर्य की बात है कि क्षत्रिय राजाओं के पश्चात् स्थापित होने वाला मुसलमानी राज्य क्षत्रिय राज्यों से पहले ही समाप्त हो गया| इसका एक मात्र कारण यही था कि क्षत्रिय शासन संचालन कला में मुसलमानों से अधिक दूरदर्शी और दक्ष थे|

मुग़ल साम्राज्य के पतन-काल में देश में अराजकता, अशांति और अव्यवस्था का बोलबाला हो उठा| जन साधारण के जीवन और संपत्ति पर खुला डाका पड़ने लगा| मराठों के दल पर दल राजस्थान में लुट-मार को प्रति वर्ष आने लगे| राजपूत राज्यों के लिए इस्लामी आक्रमण से भी अधिक भयंकर भय नवोदित मराठा शक्ति से उत्पन्न हो गया| पर जहाँ जहाँ भी खुला युद्ध हुआ, वहां वहां अतुल मराठा शक्ति राजपूत तलवार के जौहर के सामने ठहर न सकी| संसार के इतिहास में तो प्रचंड आग उगलने वाली तोपों पर घोड़ों से सीधा आक्रमण करने की दो-चार ही घटनाएँ होंगी पर राजस्थान में भयंकर गोला बरसाती हुई तोपों पर सामने से घोड़ों द्वारा आक्रमण करने के वीरत्वपूर्ण कार्य एक नहीं अपितु दसों है| इस प्रबल वीरत्व,पराक्रम और साहस के सामने संसार का समस्त शौर्य और पराक्रम एक दम फीका पड़ जाता है| मराठे ऐसी वीर और अदभुत विक्रमशाली राजपूत जाति के राज्यों पर उनकी पारस्परिक फूट के कारण ही बार-बार आक्रमण करने का साहस करते थे|

अल्प काल में ही मराठा शक्ति क्षीणप्राय: हो गई व स्वयं ही अपने पतन का कारण बनी| मराठा शक्ति की पतनावस्था के समय भी देश के एक बड़े भूभाग पर राजपूतों का ही प्रभुत्त्व था| यह कितने महत्त्व की बात है कि राजपूत राज्यों से टकराने वाली सब शक्तियां समाप्त हो गई पर राजपूत राज्य थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ ज्यों के त्यों बने रहे| देश पर शासन करने का राजपूतों ला अधिकार सीमित तो हो गया पर समाप्त नहीं हुआ|

इस देशव्यापी अराजकता और फूट के कारण भेद-नीति का आश्रय लेकर अंग्रेजों ने शासक के रूप में देश में अपने पैर जमा लिये| मुसलमानों से लंबे संघर्ष के कारण थक जाने से और मराठों की अराजकता और अन्यायपूर्ण नीति से विवश होकर राजपूत राज्यों ने अंग्रेजों को सार्वभौम सत्ता के रूप में स्वीकार कर लिया| लंबे संघर्ष से थकित, पीड़ित और क्षुब्ध राजपूतों को शांति और न्याय के दूत अंग्रेज वरदान स्वरूप जान पड़े| अंग्रेजी प्रभुत्वकाल में राजपूतों का बहुमुखी पतन हुआ| इस पतन के मूल-भूत कारणों पर आगे विचार किया जायेगा| पर इस समय ध्यान देने की केवल एक ही बात है कि अब भी भारत के बड़े भू-भाग पर राजपूतों का शासन कुछ सीमित अधिकारों के साथ ज्यों का त्यों बना रहा| अंग्रेजों द्वारा बाद में अपनाई गई देशी राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति ने राजपूतों को अपना भक्त बना लिया| यह एक दूरदर्शी और कुटनीतिक दृष्टि थी जिसे अंग्रेजों जैसे सफल शासकों ने अपना कर भारत में अपने प्रभुत्त्व की नींव को और भी दृढ़ कर दी|

अंग्रेज राज्यकाल की स्थापना-काल से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भ हो गया था| सर्वप्रथम वि.स. १९१४ के सिपाही द्रोह को हम मुक्ति-संग्राम के नाम से पुकार सकते है| जिसमें राजपूतों ने व्यापक रूप से भाग लिया| इसके उपरांत प्रथम विश्व-युद्ध के समय से भारतीय स्वतंत्रता की मांग और भी अधिक प्रबल हुई और अंत में भारतीय कांग्रेस और कतिपय अन्य क्रांतिकारी देश भक्तों ने स्वाधीनता के लिए प्रयत्न करना शुरू कर दिया| स्वतंत्रता की यह मांग दुसरे विश्व युद्ध तक निरंतर जारी रही| दुसरे युद्ध की समाप्ति के पश्चात् अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति और देश की गिरती हुई आर्थिक दशा और सैनिक असंतोष के कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा| ऊपर के स्वतंत्रता संग्राम व आन्दोलनों आदि में राजपूतों का कुछ प्रान्तों के अतिरिक्त कोई उल्लेखनीय हाथ नहीं रहा| ऐसा क्यों हुआ, इस पर भी आगे प्रकाश डाला जायेगा| इस समय तो केवल इतना ही जान लेना आवश्यक है कि जिस समय देश में स्वतंत्रता की मांग की जा रही थी उस समय कुछ अपवादों को छोड़कर राजपूत एकदम तटस्थ रहे| पर राजपूत संस्कृति, व्यवस्था और स्वभाव को जानने वाले ही यह भली भांति जान सकते अहि कि, निरंतर 550 वर्षों तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष करने वाली यह जाति अंतिम समय में निष्क्रिय होकर क्यों बैठ गई|

15 अगस्त सन 1947 ई. को अंग्रेजों ने भारत से अपना राजनैतिक प्रभुत्त्व उठा लिया| अब भारत को राजनैतिक स्वतंत्रता मिली| भारत में गणराज्य की स्थापना हुई| इस गणराज्य भारत में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि सभी दृष्टियों से सबसे अधिक हानि राजपूतों को उठानी पड़ी| राजपूतों द्वारा स्थापित संसार के प्राचीनतम राज्य, भारत के इतिहास में इस समय सर्वप्रथम समाप्त हुए| राजपूतों द्वारा चिरिपरिचित मर्यादा और संस्कृति को इस समय भारतीय इतिहास में सबसे पहले योजनबद्ध रूप से समूल नष्ट करने का प्रयास हुआ| इस समय राजपूत जाति, संस्कृति, व्यवस्था, मर्यादा आदि को वैज्ञानिक उपायों से संगठित रूप से समूल नष्ट करने का प्रयास हो रहा है| वास्तव में यह भारतीय इतिहास का अत्यंत ही नाजुक और महत्त्वपूर्ण समय है|

अतएव यही देखना है कि संसार की प्राचीनतम शासक जाति किस प्रकार पहलेपहल राज्य-सत्ता हीन बना दी गई| संसार की प्रबल और पराक्रमी जाति को किस प्रकार संघर्षहीन, परावलम्बी, भीरु और नैतिकताहीन बनाया जा रहा है और किस प्रकार उसके राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अस्तित्त्व को कुचलकर उसके सम्पूर्ण जातिय अस्तित्त्व को ही समूल नष्ट करने का प्रयास हो रहा है| और यह भी देखना है कि क्या राजपूत जाति ने अपने इस सर्वागीण पतन को मन, वचन और कर्म से स्वीकार कर लिया है ? क्या उसकी पराजय अंतिम है? यदि नहीं तो यह भी विचार करना है कि इस जाति के लिए क्या महान भविष्य होगा ? किस स्थान पर और किस रूप में आशा और सफलता, विजय और उल्लास प्रतीक्षा कर रहे है ? क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य ? मार्ग की कठिनाइयाँ, शत्रु और मित्र कहाँ और कौन है ?

-: समाप्त :-

1 comment:

  1. उत्तम लेखनी के लिए आपका धन्यवाद

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