Thursday, October 10, 2013

नई प्रणाली : नया दृष्टिकोण - 2 (राजपूत और भविष्य)

भाग एक से आगे .....
यह अब निश्चित-सा हो गया है कि ब्राह्मणों का प्रभावशाली अंग अन्य बुद्धिजीवी वर्गों की भांति शुद्रोचित धर्म-कर्म और गुणों के सहित शुर्दों के साथ आगे बढ़ेगा| सत्ता प्राप्त बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा शुद्रोचित धर्म-कर्म और गुण प्रधान पास किये जाने वाले कानून और शुद्रोचित संस्कृति को दिया जाने वाला प्रोत्साहन आज इस बात के प्रत्यक्ष साक्षी है, इस नए पनपने वाले शुद्र्वाद का रूप अतीव भयंकर होगा, क्योंकि इसका प्रेरणा स्रोत आस्तिकवाद पर आधारित भारतीय जीवन दर्शन न होकर नास्तिकवाद पर आधारित विदेशी जीवन-दर्शन है| यह भी निश्चित हो चूका है कि भारत के बुद्धिजीवी तत्वों द्वारा प्रेरित इस शुद्रोत्थान की परिसमाप्ति साम्यवाद अथवा उसी के निकट जाकर कहीं होगी| इस समय बुद्धिजीवी तत्वों का सुदृढ़ दुर्ग कांग्रेस परस्पर विरोधी हितों और स्वार्थों का संरक्षण और प्रतिनिधित्व कर रही है| वह एक विचित्र प्रकार की खिचड़ी है जिसमें अरबपति, पूंजीपतियों से लेकर निर्धन और भूखा नंगा किसान, मजदूर तक सम्मिलित है| पर यह स्थिति अधिक दिनों तक रहने की नहीं है| उसे दक्षिण और वामपंथी विचारधाराओं में से किसी एक को निश्चित रूप से पकड़ना और कार्यान्वित करना पड़ेगा| वह भविष्य में दो परस्पर विरोधी स्वार्थों और हितों में संतुलन नहीं रख सकेगी|

इस समय कांग्रेस का बुद्धिजीवी तत्व पूंजी-जीवी बनियों के गत वर्षों के अहसान से दबा हुआ है, इसीलिए वह बड़ी चतुराई से बनियों के स्वार्थों को अब तक बचाता आया है| पर भविष्य में उसे सत्तारूढ़ रहने के लिए इस नीति को छोड़ना पड़ेगा| वह एक साथ दो घोड़ों पर सवारी नहीं कर सकता| प्रकटत: ऐसा है कि कांग्रेस का बुद्धिजीवी तत्व भारत को साम्यवादी ढांचे के अनुरूप ढाल कर साम्यवादी क्रांति से देश को बचा रहा है| इस प्रकार के कार्यों से साम्यवादी क्रांति तो बचाई जा सकती है पर साम्यवाद के प्रभाव को दूर नहीं किया जा सकता| कांग्रेस स्वयं साम्यवादी व्यवस्था को अपनाकर भारत के साम्यवादियों के प्रभाव को तो नष्ट कर सकती है पर साम्यवाद के प्रभाव को वह किसी भी भांति नष्ट नहीं कर सकती| इस प्रकार सदैव सत्तारूढ़ रहने के लिए कांग्रेसी तत्व आज निश्चित रूप से देश को साम्यवाद की और ले जा रहें है| वास्तव में अब कांग्रेस में पूंजीवादी तत्वों के स्वार्थ सुरक्षित नहीं है, पर कुछ वर्षों तक वे और कांग्रेस से चिपके रहकर उसे दक्षिण-पंथी बनाये रखने का प्रयास करते रहेंगे| अतएव यह स्पष्ट है कि कांग्रेस के तत्वाधान में भारत शनै: शनै: पर निश्चित रूप से साम्यवाद की और ही बढ़ रहा है|

दूसरी और भारत के पूर्वी क्षितिज पर सुजलां सुफलां शस्य श्यामलां पवित्र बंग भूमि में लाल अरुणोदय हो चूका है| साम्यवाद ने वहां जम कर पांव पसार लिए है| पवित्र दक्षिण-पथ के सुदूर दक्षिण प्रदेश केरल में साम्यवाद प्रभुत्व प्राप्त कर चूका है| यह प्रभुत्व साम्यवाद की परम्परा के अनुकूल गोली के बल से न होकर चुनाव-प्रणाली से हुआ है| वहां के जन-जीवन पर साम्यवाद छा गया है| जिस और से अंग्रेजों ने प्रवेश कर भारत को लाल रंग में रंगा, उसी और से भारत में साम्यवाद का लाल भूत भी बढ़ रहा है| इतिहास की यह विचित्र पुनरावृति है| अब भारत को खैबर और बोलन के उत्तरी-पश्चिमी द्वारों से खतरा न होकर दक्षिण और पूर्व से हो गया है| अंग्रेजी खतरे से बढ़कर कहीं भयंकर यह लाल खतरा है| इसका अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप नवीन ढंग से साम्राज्यवाद का प्रति रूप है| अंग्रेजों ने केवल मात्र राजनैतिक गुलामी ही थोपी, पर यह साम्यवादी खतरा सम्पूर्ण जीवन को कभी भी ढीली न पड़ने वाली साम्यवादी लौह श्रृंखलाओं में कस देगा| तब राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता एक स्वप्नवत कल्पना होगी|

द्व्नद्वात्मक भौतिकवाद और नग्न अर्थ को ही एक मात्र मान्यता देकर चलने वाला यह साम्यवादी शुद्र्वाद विशुद्ध भारतीय दर्शन और अध्यात्मवाद का कट्टर शत्रु है| घृणा, वर्ग-द्वेष और पाशविक बल इसके वे साधन है जिनके द्वारा वह समाज पर पूर्ण प्रभुत्व स्थापित करता और उसे बनाए रखता है| कहने की आवश्यकता नहीं कि यह विचारधारा और उसके द्वारा निर्मित सामाजिक ढांचा विदेशी मान्यताओं और आदर्शों के अनुरूप होने के कारण भारत के लिए अधिक उपयोगी नहीं है| पर प्रकृति तो अपना कार्य करके छोड़ेगी| यदि अन्य वर्गों ने इसे रूपांतरित करने का प्रयास नहीं किया तो एक बार तो यह तामसी प्रवृति भारत में प्रबल होकर रहेगी| ब्राहमण जाति का बड़ा अंश इस साम्यवादी रूपी शुद्रत्त्व को किसी न किसी रूप में अपना चूका है और अपनाता जा रहा है| वैश्य इसे रूपांतरित करने में सर्वथा असमर्थ है| केवल क्षत्रिय-वर्ग ही इसकी प्रवाह-दिशा को मोड़ने में समर्थ हो सकता है, पर वह भी श्रमजीवी शक्तियों के साथ मिलकर, उनसे अलग रह कर नहीं|

क्रमश:...

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